पिछले दिनों आपने अखबारों से लेकर टीवी तक में यूपी बोर्ड के क्लास 10 वीं के टॉपर्स के बारे में सुना होगा, शायद आपने उनके इंटरव्यू भी देखे होंगे। उनकी मेहनत की कहानियां आपके कानों तक पहुंची होंगी। संभवतः आप उन बच्चों के संघर्ष गाथा पढ़कर प्रेरित भी हुए होंगे। आपको सभी टॉपर्स में एक आम बात दिखी होगी कि सभी के परसेंटेज 90 के ऊपर होंगे। इन सब के बीच आपको उन बच्चों के बारे में नहीं पता होगा, जिनका कागज पर 90% अंक जैसी संख्या तो नहीं अंकित है। लेकिन, उनके संघर्ष की कहानी परसेंटेज के परिधि में घूमने वाली संख्या से कहीँ ज्यादा बलवान है।
आज हम आपको उन बच्चों की कहानियां सुनाएंगे हैं, जिनके संघर्ष के पीछे एक ऐसी संस्था है, जिसने हमारे समाज के वंचित समुदाय से आने वालों बच्चों के सपने को साकार किया है। आर्थिक तंगी और संसाधनो के अभाव के कारण अक्सर ऐसे बच्चों के सपने सिर्फ सपने बनकर रह जाते हैं। लेकिन, मालवीय चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन ने इस धारणा को तोड़ा है।
संस्था का लक्ष्य समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक शिक्षा की पहुंच को सुनिश्चित कराना है। मतलब, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के जीवन में शिक्षा का बीजारोपण करके एक मजबूत पौध की आकार देना है, ताकि कल ये पौधा बड़े वृक्ष के रूप में विकसित हो सकें। और अपनी छत्रछाया में आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सींच सकें।
आइए हम आपको मिलवाते है संस्था की एक ऐसी ऊर्जावान और संघर्षशील लड़की से, जिन्होंने अपनी मेहनत की बदौलत इस बार 10 वीं क्लास में 68.5% के साथ सफलता की इमारत गढ़ी। रेशमा एक शुद्ध पारिवारिक और व्याहारिक लड़की है। संस्था के डायरेक्टर नीरज बताते है कि जब से संस्था में रेशमा ने पढ़ना शुरू किया है,तब से संस्था के तरफ से हर संभवत मदद की जा रही है। घर की जिम्मेदारियों के बावजूद भी रेशमा ने पढ़ाई नहीं छोड़ा।
नीरज कहते है कि रेशमा के परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति है। लेकिन, उन्हें संस्था के तरफ से इसको लेकर किसी तरह की कमी नहीं की गई है। रेशमा संस्थान में आने से पहले पढ़ाई में मार्गदर्शन को लेकर भ्रमित रहती थी। लेकिन, संस्था के सहयोगी शिक्षकों ने अपने निष्ठावान प्रयास से इनकी पढ़ाई को सुगम बना दिया।
संस्था के दूसरे होनहार छात्र है आशीष। इनपर संस्था के सहयोगी शिक्षकों का ऐसा आशीष बना है कि उन्होंने 10 वीं क्लास में 65% के साथ पहले स्थान प्राप्त किया। संस्था के डायरेक्टर नीरज आशीष के संदर्भ में कहते है कि अकुशल श्रमिक माता -पिता की तीसरी संतान के रूप में आशीष को पढ़ने -लिखने से लेकर खाने -पीने तक हमेशा संसाधनो की कमी का सामना करना पड़ा है। गरीब और अशिक्षित परिवार से होने के कारण, संस्था मे आने से पहले इसका शिक्षा स्तर बहुत की निम्न था। जब यह संस्था मे आया था,तो इसे भाषा को लिखने- पढ़ने मे भी काफी समस्या थी। लेकिन, खुशी की बात यह थी,इस बच्चे मे शुरू से सीखने और नया जानने -समझने की ललक थी। आशीष के साथ-साथ उसके श्रमिक माता -पिता ने भी उसका पूरा साथ दिया है। आशीष बताते है कि मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, वहां पढ़ाई ढंग से नहीं होती थी। संस्था के शिक्षकों ने बोर्ड एग्जाम की परीक्षा में बहुत मदद किया, तभी मैं फर्स्ट डिवीसीन से पास हो पाया।
अपनी काबलियत के बल पर संस्था के तीसरे छात्र रामराज ने भी 10 वीं क्लास में सफलता अर्जित की है। रामराज ने 56% प्राप्त किया। संस्था के सदस्य का कहना है कि रामराज पढ़ने में शुरुआती समय में कमजोर था, लेकिन संस्था के सहयोग से उनमें पढ़ने को लेकर सक्रियता दिखी और आज उनका सफल परिणाम हमारे सामने है। संस्था के डायरेक्टर नीरज का कहना है कि रामराज नाम के अनुरूप ही इनका मन ज्यादा समय पास के मंदिर मे सेवा कार्य करने मे जाता था। सेवाभावी तो है पर शिक्षा तंत्र में कमजोर बच्चों पर विशेष ध्यान न देने के कारण, इनके जीवन में पढ़ाई का घोर अभाव था। संस्था में आने से पहले भाषा से लेकर गणित विषय तक में बहुत कमजोर थे ।संस्था में शिक्षिको के अथक प्रयास से इनके शिक्षा स्तर में परिमार्जन होना शुरू हुआ।
तीनों बच्चों का कहना है कि हम भविष्य में अपने सपनों का साकार करने के बाद इसी संस्था में आकर गरीब, वंचित समुदाय के बच्चों को पढ़ाएंगे, ताकि उन्हें भी उचित मार्गदर्शन मिल सकें और वे अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकें।
Author: Anand Kumar, IIMC, Delhi
Anand is a former intern at Malviya Child Welfare Foundation